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रिव्यू: कैसी है कॉमिडी-ड्रामा फिल्म 'रामप्रसाद की तेरहवीं'

अर्चिका खुराना यह एक सामान्य भारतीय मिडिल क्लास फैमिली की कहानी है जिसके मुखिया की मौत होने पर पूरा परिवार इकट्ठा होता है। इसके बाद कुछ कॉमिक और कुछ सीरियस मसले सामने आते हैं। फिल्म के जरिए आपको संयुक्त परिवार के महत्व के बारे में भी पता चलेगा। कहानी: भार्गव फैमिली के मुखिया रामप्रसाद भार्गव (नसीरुद्दीन शाह) की अचानक मौत हो जाती है। इसके बाद रामप्रसाद का पूरा परिवार उनके पुराने बंगले में इकट्ठा होता है जहां उनकी पत्नी सावित्री (सुप्रिया पाठक) अकेली रहती हैं। रामप्रसाद के 6 बच्चे , उनका परिवार और बहुत सारे रिश्तेदारों के बीच काफी नोंक-झोंक होती है। बाद में परिवार के लोग तब परेशानी में आ जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि रामप्रसाद के ऊपर भारी कर्ज था जिसे चुकाया जाना जरूरी है। इसके बाद क्या होता है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। रिव्यू: फिल्म में रामप्रसाद के बेटों के किरदार मनोज पहवा, निनाद कामत, विनय पाठक और परमब्रत चटर्जी ने निभाए हैं। इन सभी ने अपने किरदार को बहुत अच्छे ढंग से जिया है। डायरेक्टर के तौर पर सीमा पहवा की यह पहली फिल्म है लेकिन उन्होंने इसे काफी रीयलिस्टिक रखा है और एक मिडिल क्लास भारतीय परिवार का महौल दिखाने में सफल हुई हैं। हालांकि कहीं न कहीं सीमा पहवा का लेखन उतना प्रभावपूर्ण नहीं रहा है जिसके कारण कहानी और बहुत से सीन आपको इमोशनल नहीं कर पाते हैं। फिल्म के बाकी कलाकार कोंकणा सेन शर्मा, सुप्रिया पाठक, विक्रांत मैसी ने अपने किरदारों को बहुत अच्छे ढंग से जिया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो अच्छी कहानी और बहुत टैलेंटेड कास्ट के बावजूद यह फिल्म मनोरंजक होने के बावजूद प्रभाव छोड़ने में अधिक कामयाब नहीं हो पाती है। क्यों देखें: मिडिल क्लास कॉमिडी ड्रामा फिल्में पसंद हों तो इसे देख सकते हैं।


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