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कमालरुख का खुलासा- वाज‍िद खान नहीं चाहते थे धर्म बदलूं, बच्‍चों को अवैध मानती थी फैमिली

हाल में बॉलिवुड के मरहूम म्यूजिक डायरेक्टर की पत्नी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर खुलासा किया था कि किस तरह उनकी ससुराल में उनपर धर्म कुबूल करने का दबाव बनाया गया था। वाजिद खान की पत्नी ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर ऐंटी कन्वर्जन लॉ पर लंबा पोस्ट लिखा। 'इंटरकास्ट मैरिज' की वजह से उन्होंने जो दर्द झेला उसका जिक्र किया। कमालरुख ने अपने नोट में लिखा है कि वह और वाजिद कॉलेज में साथ पढ़ते थे। शादी के पहले दोनों की 10 साल कोर्टशिप चली। कमालरुख पारसी और वाजिद मुस्लिम थे। यहां पढ़ें: कुछ ऐसी थी लव स्टोरी हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में कमाल रुख ने इस मुद्दे पर खुलकर बात की है। उन्होंने बताया, 'वाजिद और मैं मीठीबाई कॉलेज में मिले थे। हमारी 10 साल तक कोर्टशिप चली। उन दिनों वाजिद बप्पी लहरी के ग्रुप में म्यूजिशन थे और शो के लिए बहुत ट्रैवल करते थे। बाद में जब हमने शादी का फैसला लिया तो वाजिद इस बात को जानते थे कि मैं करना पसंद नहीं करूंगी और धर्म हमारी शादी में जरूर रोड़ा बनेगा। बाद में सोच-समझकर हमारे प्यार की धर्म के ऊपर जीत हुई। हालांकि उस समय भी वाजिद का परिवार हमारे फैसले से खुश नहीं था। शुरू के कुछ महीने अच्छे बीते लेकिन जब उनके परिवार से मेरा संपर्क बढ़ा तो वाजिद की मां ने मुझ पर मुस्लिम बनने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। बच्चों के पैदा होने के बाद तो यह दबाव इतना बढ़ गया कि इसके कारण मेरे और वाजिद के बीच दूरियां आने लगीं।' 'वाजिद नहीं चाहते थे कि मैं मुस्लिम बनूं' इस इंटरव्यू में कमालरुख से जब पूछा गया कि शादी से पहले क्या धर्म के मुद्दे पर बात हुई थी तो उन्होंने कहा, 'बिल्कुल, जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं धर्मांतरण के आइडिया से बिल्कुल भी सहमत नहीं थी। काफी सोचने समझने के बाद हमने स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत शादी करने का फैसला किया। अगर धर्म वाजिद के लिए इतना ही महत्वपूर्ण होता तो वह कभी एक मुझ जैसी पारसी लड़की से शादी नहीं करते। सब कुछ जानते हुए भी मुझसे शादी करने से पता चलता है कि वाजिद कितनी खुली सोच के इंसान थे जो उन्होंने हमेशा मेरे फैसले का सम्मान किया। बाद में केवल उनके परिवार खासतौर पर वाजिद की मां की तरफ से ही ज्यादा दबाव बनाया गया था।' यह भी पढ़ें: 'मेरे बच्चों को अवैध मानता था वाजिद का परिवार' मेरी और वाजिद की सहमति के बावजूद उनके (वाजिद) के परिवार ने कभी मुझे अपने में शामिल नहीं किया। यहां तक कि वह हमारे बच्चों को भी अवैध मानते थे क्योंकि न तो मैंने इस्लाम कुबूल किया था और न ही हमारा मुस्लिम कानून के मुताबिक निकाह हुआ था। मुझ पर उस परिवार में इतना दबाव बनाया गया कि मैं अपने पारसी त्योहार भी नहीं मना पाती थी और अगर ऐसा करती थी तो बहुत हाय-तौबा मच जाती थी। वाजिद की मां तो उनसे मेरे सामने ही दूसरी शादी करने को बोलती थीं, हालांकि वाजिद ने कभी उनकी बात नहीं मानी।


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